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पुस्तक-समीक्षा

1.    एक जगह साथ : सहज काव्य-संग्रह        चेतन कुमार गौड़
 ‘एक जगह साथ’ (कविता संग्रह) में कवि विश्वनाथ कदम ने आज की भागदौड़ भरी जिंदगी की जद्दोजहद, अतीत और वर्तमान, मानव समाज में हो रहे परिवर्तन, पारिवारिक सामंजस्‍य की कमी, भ्रष्‍टाचार, बाजारवाद एवं नारी की दुर्दशा को बड़े ही मार्मिक एवं सूझबूझ भरे अंदाज में प्रस्‍तुत किया है। यह निश्चित तौर पर पठनीय है। 
साथ ही पाठकों को झकझोरने एवं जिंदगी के प्रति विचारने को मजबूर करता है। ‘मित्र के आपातकाल’ शीर्षक से लिखी कविता में बिगड़ते संबंधों एवं स्‍वार्थी दुनिया के मुखौटे का चित्रांकन मतलबी मित्रों के रूप में सटीक ढंग से किया है।’उसने कहा’ कविता में जहां व्‍यक्ति के नैतिक पतन, ह्रदय परिवर्तन एवं जीवन का मूल्‍यांकन करने तथा स्‍वविवेक से जीने की ओर प्रेरित किया गया है। वह‍ीं ‘बिना धुरी के’ कविता में सच्‍चाई से कोसों दूर, दिखावटीपन, झूठी वाहवाही लूटने, अपनी जमीन छोड़कर आकाश में उड़ने की अंधी चाह में व्‍यक्ति की भटकन को प्रस्‍तुत किया है।’बाजार’ कविता बढ़ते बाजारवाद और कर्जदार, भौतिक वस्‍तुओं के प्रति आकर्षण और कर्जदारों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है।केंचुआ- लिखना चाहता हूं, एक कवि की लेखन के प्रति व्‍यथा का सजीव एवं ज्‍वलंत चित्रण है कविता का आरंभ एवं अंत, जो ना-ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाता है और सिद्व करता है कि यह पीड़ा केवल उसकी नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।पिता के नाम- कविता में स्‍वाभिमानी जीवन जीते व्‍यक्ति बुढ़ापे की व्‍यथा का करुण व मार्मिक चित्रण प्रस्‍तुत किया है।
दुनियादार शीर्षक से लिखी कविता कवि ने एक पढे-लिखे व्‍यक्ति की मनोदशा को व्‍यंग्‍यात्‍मक रूप में समाज के सामने रखने का सराहनीय प्रयास किया है। कविता रोचक और ज्ञानवर्द्वक होने से पठनीय बन पड़ी है।

मोठी आई- कविता परिवार को समूह में रहने की प्रेरणा देती हैं। कुल ‍मिलाकर एक सरल सहज काव्य संग्रह ‘एक जगह साथ’ कई रंगों की कविताओं का सुख देता है।

पुस्‍तक – एक जगह साथ (कविता संग्रह)
लेखक – विश्‍वनाथ कदम

 2.   सुगंधिता : सुगंध से सराबोर काव्य संग्रह    -रवीन्द्र गुप्ता
 हाल ही में कवि ललित भारद्वाज के ‍कविता संग्रह सुगंधिता ने साहित्य संसार में दस्तक दी है। संग्रह अच्‍छा बन पड़ा है। कवि ने जीवन के यथार्थ व अपने आसपास देखे-महसूस किए गए यथार्थ का चित्रण खूबसूरत अंदाज में किया। लेखक बधाई के पात्र हैं। 

कविता ‘अंतहीन सुखमयी पल’ में एक याचक की व्यथा-कथा का अच्‍छा चित्रण किया गया है। पिता-पुत्री का दयाभाव व याचक की व्यथा-कथा मन को झकझोरती है। जिंदगी की तन्हाई में अकेलेपन का चित्रण है। मेरा कस्बा कविता में अतीत से ‍अब तक के बदलाव को रेखांकित किया गया है। कस्बे के शहर में बदल जाने व समयानुसार लोगों के रंगरूप बदल जाने का चित्रण अच्छा किया गया है। इसमें लेखक की पंक्तियां दिल बदल गए/ रिश्ते बदल गए/ मंजिलें बदल गईं/ लोग बदल गए/ भावनाएं बदल गईं- बहुत कुछ कह जाती हैं।

खूबसूरत संसार में चुलबुली बालिका की शरारतों ने बहुत लुभाया। मुर्गी को मुगड़ी बोलने वाली बालिका की हरकतें मन को लुभाती हैं।

कविता खुश-गम प्रेमी-प्रेमिका के साथ-साथ न होने की कथा कहती है मसलन तू मेरे पास नहीं/ तू मेरे साथ नहीं/ अजीब सी विडंबना है मेरे लिए। खैर?

‘हमारा श्राप’ शीर्षक से रची कविता में असंख्य कटे पेड़ों के विलाप को आवाज देकर लेखक ने स्तुत्य कार्य किया है। पेड़ों के रूदन, तड़पना, आंखों में आंसू आदि पाठक के दिल को सीधे स्पर्श करते हैं।

एक साथ चलने का सबब कविता में लेखक ने खजूर के पेड़ को लेकर अपने मन की बात कही है। जैसे जिंदगी का यह सफर/ जो मिला है हमें जय करने को… आदि पंक्तियां बेहतरीन हैं।

यथार्थ 24 घंटों का कविता में नारी मन की व्यथा-कथा का अच्‍छा चित्रण किया गया है। भारत व कमोबेश सारे संसार की अधिकतर नारियों की यही व्यथा-कथा है। महिलाओं को आज भी वह मान-सम्मान व आदर नहीं मिला है जिसकी कि वे हकदार हैं। दुनिया की आधी आबादी आधा पेट खाकर पूरे जग-संसार को पालती है। कहीं-कहीं प्रूफ की त्रुटि खलती है, किंतु वे नजरअंदाज करने योग्य हैं। श्रेष्ठ कविता संग्रह पर लेखक को साधुवाद।

पुस्तक : सुगंधिता (काव्य-संग्रह) 
कवि : ललित भारद्वाज 
प्रकाशक : माधुरी प्रकाशन 
मूल्य : 225 रुपए

 3.   तुम नहीं दिखे नगाधिराज : यात्रा करते निबंध    * समीक्षक
 यह एक सहज रूप से प्रस्तुत निबंध संग्रह है। जिसमें बीस से कुछ ज्यादा निबंध हैं। इस संग्रह की खासियत है इसका संस्मरणनुमा होना। पढ़ते-पढ़ते आपकी आंखों के सामने अपने आप चित्र से आते जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे बचपन में बायस्कोप के शीशे पर आंख लगाने पर आते थे। अंतर सिर्फ इतना कि यहां आपकी कल्पना असीमित है उसमें बाइस्कोप की सीमित स्लाइड्स वाली रोकथाम नहीं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने ‘तुम नहीं दिखे नगाधिराज’ के जरिए निबंधों को चलित शब्द दिए हैं। चलित इसलिए कि पन्ने दर पन्ने इन निबंधों में गुंथे शब्द भी आपके सहयात्री हो लेते हैं। उपाध्यायजी के निबंधों में सामाजिक सरोकार भी हैं, बड़े साहित्यकारों के ‘बड़े होने’ का असल विश्लेषण भी और तमाम क्यों तथा कैसे से परे जाकर हावी होती भावनाओं की तस्वीर भी।

कहीं-कहीं तो यह निबंध खांटे यात्रा वृत्तांत बन जाते हैं लेकिन फिर निबंध की अपनी गति पकड़ लेते हैं। खुद लेखक के शब्दों में-‘सोचता हूं यह निबंध भी तो एक झुटपुटा है। धूप के अनुभव में घुली हुई संवेदना का ऐसा झुटपुटा जिसके सिंदूरी अनुभवों से कभी मुक्त होने का मन नहीं करता। ऐसा सिंदूरी, दूधिया धुंधलका जिसमें सबकुछ साफ दिखाई देता है। लेकिन फिर भी जिसे लोग धुंधलका कहते हैं।” संग्रह के सभी निबंधों में भाषा का यही प्रवाह आपके साथ आगे बढ़ता चला जाता है।

और अंत में जब आप ‘अम्मा’ को पढ़ते हैं तो अपनी दादी या मां को खोजने लगते हैं। भले ही उनके देश, काल या परिस्थितियों में अंतर रहा हो लेकिन आखिरकार तो यह भावना सर्वोच्च है ही जो औरत का सहज औरत होना सार्थक करती है। पुस्तक को पढ़ने के बाद शायद अगली बार आपको बस स्टैंड पर खड़ी किसी भी बुजुर्ग महिला में अपनी दादी या मां का अक्स नजर आने लगे और कुछ क्षणों के लिए आपका मन तरलता से भर जाए, तमाम दौड़ती-भागती चीजों के बीच।

पुस्तक : तुम नहीं दिखे नगाधिराज 
लेखक : नर्मदाप्रसाद उपाध्याय 
प्रकाशक : मेघा बुक्स, एक्स 11, नवीन शहादरा, दिल्ली, 110032 
मूल्य : 250 रुपए

4.   मध्यमवर्गीय अनुभवों का दस्तावेज    पुस्तक समीक्षा
 सूर्यकांत नागर की पुस्तक ‘श्रेष्ठ कहानियां’ उनकी 17 चुनिंदा कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों में हमें समाज के विभिन्न वर्गों के उजले और काले चेहरे हूबहू नजर आते हैं। उनकी कहानियां मध्यमवर्गीय व्यक्ति के जीवन के अनुभवों का दस्तावेज है। लेखक ने बिना किसी लाग-लपेट के कहानियों के पात्रों के माध्यम से उनके मन की वास्तविक सोच को सीधे-सीधे उजागर किया है। 

लेखक ने ‘न घर, न घाट’ में एक ओर दलित घीसू के डॉक्टर बन जाने पर गांव, पत्नी व पिता को भुला दिए जाने के उसके व्यवहार को उकेरा है तो साथ ही ऊंचे पद पर पहुंच जाने के बावजूद दलित के प्रति उच्च वर्ग लोगों का रवैया नहीं बदलने की बात रखी है।

‘मृगतृष्णा’ में एक लाड़-प्यार में पले-बढ़े, थर्ड डिवीजन में पास बिगड़ैल पौत्र के प्रति मोह के कारण नामी प्रोफेसर रहे दादाजी जब-तब शर्मिन्दगी झेलते हैं। पति की बीमारी में अस्पताल में पैसों की किल्लत से जूझती पत्नी की व्यथा ‘तैरती मछली के आंसू’ में टपकती नजर आती है।

‘पीएचडी करती लड़की का पिता’ में बेटी की पीचएडी के दौरान पिता को हुए अनुभवों का रेखाचित्र है। पिता और बेटी के प्यार को लेकर कम ही उपन्यास और कहानियां लिखी गई हैं। लेकिन लेखक ने इस विषय पर भी अपनी लेखनी के जरिए अत्यंत सहजता और सरलता से पिता के दिल में बेटी के लिए छुपे प्यार को शब्दों में पिरोया है।

इस कहानी में लेखक लिखते हैं कि ‘यह अलग बात है कि पिता का प्यार दिखाई नहीं देता। वह निर्व्याज, निःस्वार्थ, तर्कातीत और मौन होता है।’ ‘बासी कढ़ी में उबाल’ में उम्रदराज व्यक्ति का जीवन से मोह व बुढ़ापे के आगमन के दौरान होने वाले अनुभवों को लेखक ने काफी खुलेपन से प्रस्तुत किया है। ‘जल्दी घर आ जाना’ पत्नी के बिना पति की दशा बयान करती है। वहीं ‘बेटियां’ माता-पिता के प्रति बेटी के निःस्वार्थ प्रेम को दर्शाती हैं। भावना के स्तर पर ये कहानियां हमको उद्वेलित करती हैं।

पुस्तक : श्रेष्ठ कहानियां 
लेखक : सूर्यकांत नागर 
प्रकाशक: समय प्रकाशन, आई1/ 16, शांतिमोहन हाउस,अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली, 110002 
कीमत : 160 रुपए

5.   टीवी पत्रकारिता पर नई किताब 
टेलीविजन पत्रकारिता की पढ़ाई करने वालों और टीवी के पेशेवर पत्रकारों के लिए खुशखबरी। पहली बार बाजार में एक ऐसी किताब आई है… जिससे इस फील्ड के लोगों को सीधे फायदा मिल सकता है। एक ऐसी किताब जिसका सीधा-सीधा सरोकार टेलीविजन पत्रकारिता की भाषा से है।वैसे तो कई टीवी पत्रकारों ने कई किताबें लिखी हैं लेकिन पहली बार टेलीविजन पत्रकारिता के व्यवहारिक ज्ञान से जुड़ी एक किताब बाजार में आई है। इस किताब का नाम है – ‘टेलीविजन की भाषा’। जबकि इसे लिखा है वरिष्ठ टीवी पत्रकार औऱ IBN7 में एसोसिएट एक्जीक्यूटिव पत्रकार के तौर पर काम कर रहे हरीश चंद्र बर्णवाल ने। हरीश चंद्र बर्णवाल की ये दूसरी किताब है।किताब के नाम के अनुरूप ये किताब सीधे सीधे टेलीविजन की भाषा से जुड़ी है। न सिर्फ टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे लोगों को इस किताब से व्यवहारिक फायदा मिलेगा, बल्कि टेलीविजन जगत में काम कर रहे पेशेवर पत्रकारों को भी इससे फायदा मिलेगा।

इस किताब में सिलसिलेवार तरीके से हर विषय पर विस्तार पूर्वक लिखा गया है। मसलन न सिर्फ टेलीविजन की दुनिया के अनुरूप शब्दों और वाक्यों के बारे में तफ्सील से लिखा गया है। बल्कि स्लग, टॉपिक, प्रोमो, हेडलाइंस, एंकर या फिर रिपोर्टर की भाषा पर अलग-अलग चैप्टर बनाकर विस्तारपूर्वक बताया गया है। ऐसा लगता है कि लेखक ने सिर्फ भाषा को आधार बनाकर इस पुस्तक को लिखने में काफी श्रम किया है।

किताब सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें हर टॉपिक पर ढेरों उदाहरण दिए गए हैं। नए-नए विद्यार्थियों के लिए सबसे बडा फायदा ये है कि वो इस किताब से टेलीविजन पत्रकारिता की दुनिया से वाकिफ हो सकेंगे। अगर उन्हें न्यूज चैनल में काम करना है तो वे इस किताब के जरिए टीवी की दुनिया की भाषा से परिचित हो सकेंगे।

यही नहीं, इसमें स्क्रिप्टिंग को लेकर न सिर्फ विस्तार से बताया गया है, बल्कि चौदह उदाहरण भी दिए गए हैं। ये वो चीजें हैं जो किसी विश्वविद्यालय या इंस्टीट्यूट में नहीं पढ़ाया जाता।
खुद लेखक के मुताबिक ‘मैं पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद जब न्यूज चैनल में काम करने के लिए आया तो एक नई तरह की दुनिया सामने नजर आई, ऐसे में मुझे यही लगता रहा कि जो पढ़ाई मैंने की, आखिर वो किस काम की है। इसके बाद मैंने एक ऐसी किताब लिखने का फैसला किया, जो पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले लोगों को व्यवहारिक ज्ञान दे सके।’

किताब में सिर्फ पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि पेशेवर पत्रकारों के लिए भी काफी मसाला है। अपनी स्क्रिप्ट को कैसे बेहतर बनाएं, किताब को पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है। इसमें एंकर की भाषा और रिपोर्टर की जुबान पर अलग-अलग चर्चा की गई है।

यही नहीं इस किताब में छोटी-छोटी बारीकियों को भी समेटने की कोशिश की गई है। मसलन स्त्रीलिंग-पुल्लिंग, वचन, मुहावरे और लोकोक्तियां का भी एक अच्छा खासा संग्रह दिया गया है। भाषा को लेकर कानूनी बारीकियों को भी इसमें समेटने की कोशिश की गई है।

इस किताब के आमुख को लिखा है टेलीविजन की दुनिया के वरिष्ठतम पत्रकारों में से एक राजदीप सरदेसाई ने। राजदीप ने कहा कि इस किताब को हर टेलीविजन पत्रकारों को जरूर पढ़ना चाहिए। किताब के बारे में विस्तार से लिखते हुए राजदीप सरदेसाई एक जगह लिखते हैं कि टेलीविजन न्यूज मीडिया में लोगों का भरोसा फिर से कैसे बहाल किया जाए, इसके लिए सही भाषा की समझ जरूरी है। चाहे वो बोल्ड हेडलाइन हो, ब्रेकिंग न्यूज हो या फिर न्यूज फ्लैश। जरूरी है कि उसकी भाषा तस्वीरों के अनुकूल हो और बारीक छानबीन के बाद उसे तथ्यों के अनुरूप ही लिखा जाए।

राजदीप के अनुसार भाषा एक दोधारी तलवार की तरह है। इसका प्रयोग संपर्क बनाने में भी किया जा सकता है और उलझाने में भी। हरीश की किताब हर उस व्यक्ति के लिए सटीक मार्गदर्शन उपलब्ध कराती है, जो फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम कर रहे हैं या भविष्य में करेंगे।

पुस्तक : ‘टेलीविजन की भाषा’
लेखक : हरीश चंद्र बर्णवाल
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन
पृष्ठ संख्या : 236 
मूल्य : 350 रुपए


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